प्राकृतिक चिकित्सक थे गाधी जी

राष्ट्रपिता महात्मा गाधी (Mahatma Gandhi)  प्राकृतिक चिकित्सा (Nature Cure) व योग (Yoga) पर गहरा विश्वास करते थे। यही नहीं, वह स्वय और परिवार के सदस्यों पर भी प्राकृतिक चिकित्सा के नुस्खों को अपनाया करते थे। परिवार के अलावा वह प्रख्यात उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला (Ghansyam Das Birla) के भी प्राकृतिक चिकित्सक थे। योग व प्राकृतिक चिकित्सक डॉ, ओमप्रकाश आनद के अनुसार घनश्याम दास बिड़ला महात्मा गाधी को एक सफल व महान प्राकृतिक चिकित्सक मानते थे। बिड़लाजी के अनुसार उन्हें बार-बार जुकाम (Cold) हो जाया करता था और उनका हाजमा भी खराब रहता था। गाधी जी ने उन्हें आहार के सदर्भ में हमेशा ही निर्देश दिए और उन्हें स्वस्थ होने में पूरी सहायता की। यही नहीं, गाधीजी के सपर्क में आने पर जिस किसी शख्स ने उनसे अपनी स्वास्थ्य समस्या बतायी, तब उन्होंने उस व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा Nature Cure) सबधी परामर्श (Advice) अवश्य दिया।

महात्मा गांधी भारत में प्राकृतिक चिकित्सा के अतिरिक्त उपवास और सत्याग्रह के नियमों का भी अनुपालन किया। इन्होने सर्वप्रथम भारत में प्राकृतिक आश्रम (Ashram) का निर्माण किया। इन्होने ‘आरोग्य की कुंजी’ का सम्पादन किया जिसका प्रचार-प्रसार देश और विदेश में हुआ तथा लाखों लोगों ने इससे लाभ उठाया।

प्रथम परिचय

महात्मा गाधी जब अफ्रीका (Africa) में थे, तब वह कब्ज (Constipation) से बहुत पीड़ित थे। कब्ज दूर करने के लिए उन्हें कोई न कोई चूर्ण या दवा लेनी पड़ती थी। जब वह कब्ज और इसे दूर करने वाली दवाएं खाकर तग आ चुके, तब उन्होंने अफ्रीका में ही एक अंग्रेज मित्र से सलाह ली। उसने उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा के जनक लुई कूने (Louis Kuhne) की पुस्तक ‘दि न्यू साइंस ऑफ हीलिग’ (The New Science of Healing) और एडोल्फ जुस्ट (Adolf Just) की पुस्तक ‘रिटर्न टू नेचर’ (Return to Nature) को पढ़ने का परामर्श दिया। इन दोनों पुस्तकों का अध्ययन कर गाधी जी स्वास्थ्य सबधी प्राकृतिक दलीलों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने पुस्तक में वर्णित प्राकृतिक चिकित्सा की विधिया-ठंडा घर्षण, कटि स्नान (Hip Bath), मेहन स्नान और पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी (Mud Pack) आदि के छोटे-छोटे प्रयोग स्वय पर करने शुरू किये। कालातर में गाधीजी प्राकृतिक चिकित्सा के जानकार बन गए और उन्होंने इस चिकित्सा के प्रचार-प्रसार के महत्व पर जोर दिया। यही कारण कि 2 अक्टूबर को महात्मा गाधी की जयती के दिन प्राकृतिक चिकित्सा दिवस भी मनाया जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति। यह चिकित्सा विज्ञान आज की सभी चिकित्सा प्राणालियों से पुराना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि यह दूसरी चिकित्सा पद्धतियों कि जननी है। इसका वर्णन पौराणिक ग्रन्थों (mythological texts) एवं वेदों (Vedas) में मिलता है, अर्थात वैदिक काल (Vedic period) के बाद पौराणिक काल (mythological period) में भी यह पद्धति प्रचलित थी।

आधुनिक युग में डॉ॰ ईसाक जेनिग्स (Dr. Isaac Jennings) ने अमेरिका में 1788 में प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग आरम्भ कर दिया था। जोहन बेस्पले ने भी ठण्डे पानी के स्नान एवं पानी पीने की विधियों से उपचार देना प्रारम्भ किया था।

महाबग्ग (Mahabgag ) नामक बोध ग्रन्थ में वर्णन आता है कि एक दिन भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के एक शिष्य (disciple) को सांप (Snake) ने काट लिया तो उस समय विष (Poison) के नाश के लिए भगवान बुद्ध ने चिकनी मिट्टी (smooth clay), गोबर (dung), मूत्र (urine) आदि को प्रयोग करवाया था और दूसरे भिक्षु (Monk) के बीमार पड़ने पर भाप स्नान (steam bath) व उष्ण गर्म व ठण्डे जल (warm and cold water bath) के स्नान द्वारा निरोग किये जाने का वर्णन 2500 वर्ष पुरानी उपरोक्त घटना से सिद्ध होता है।

प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-2 योग एवं आसानों का प्रयोग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सुधारों के लिये 5000 हजारों वर्षों से प्रचलन में आया है। पतंजलि का योगसूत्र (Patanjali ‘s Yogasutra) इसका एक प्रामाणिक ग्रन्थ है इसका प्रचलन केवल भारत (India) में ही नहीं अपितु विदेशों (foreign countries) में भी है।

प्राकृतिक चिकित्सा का विकास (अपने पुराने इतिहास के साथ) प्रायः लुप्त (Lost) जैसा हो गया था। आधुनिक चिकित्सा प्राणालियों (modern medical systems) के आगमन के फलस्वरूप इस प्रणाली को भूलना स्वाभाविक भी था। इस प्राकृतिक चिकित्सा (natural remedy) को दोबारा प्रतिष्ठित करने की मांग उठाने वाले मुख्य चिकित्सकों में बड़े नाम पाश्चातय देशों (Western countries) के एलोपैथिक चिकित्सकों (allopathic physicians) का है। ये वो प्रभावशाली व्यक्ति थे जो औषधि विज्ञान का प्रयोग करते-2 थक चुके थे और स्वयं रोगी होने के बाद निरोग होने में असहाय (Helpless) होते जा रहे थे। उन्होने स्वयं (self-healing) पर प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग करते हुए स्वयं को स्वस्थ किया और अपने शेष जीवन में इसी चिकित्सा पद्धति द्वारा अनेकों असाध्य रोगियों को उपचार करते हुए इस चिकित्सा पद्धति को दुबारा स्थापित करने की शुरूआत की। इन्होने जीवन यापन तथा रोग उपचार को अधिक तर्कसंगत विधियों द्वारा किये जाने का शुभारम्भ किया। प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy) संसार मे प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणाली से पुरानी है आदिकाल के ग्रंथों मे जल चिकित्सा व उपवास चिकित्सा का उल्लेख मिलता है पुराण काल मे (उपवास) को लोग अचूक चिकित्सा माना करते थे

भारत (India) में प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy) पद्धति का जन्म (Born) हुआ। तथा इसकी उपयोगिता की महत्ता भी भारत में अति प्राचीन समय से चली आ रही है। जिन-2 स्वास्थ्य सम्बन्धी प्राकृतिक क्रियाओं का हम प्रयोग कर रहे हैं वे सभी उपचार की पद्धतियां पूर्वावस्था में प्राचीन भारत में विद्यमान थी। भारत में ही रोग निवारण के लिए इस पद्धति का प्रयोग नहीं किया वरन् अन्य कई देशों में भी इस पद्धति का प्रयोग आज किया जा रहा है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारत की ही देन है परन्तु कुछ कारणों तथा अन्य विकासों के प्रभावानुसार यह पद्धति भारत में लुप्त हो गई। इसके बाद इसके पुनः निर्माण का श्रेय विदेशों (पाश्चातय देशों) को ही है।

ईसा से कई सौ वर्ष पूर्व ही हिपोक्रेटीज (Hippocrates) ने प्राकृतिक चिकित्सा का पुनः पुनरूथान किया। इसी कारण इन्हें ‘चिकित्सा का जनक’ (Father of Medicine) कहते है। 18वीं शताब्दी के मध्य से कुछ लोगों के प्रयास के फलस्वरूप प्राकृतिक चिकित्सा का प्रारम्भ तथा विकास फिर शुरू होने लगा तथा हम इस चिकित्सा को पुनः जानने लगे। इस पद्धति के पुनरूथान में जिन महान और प्रभावशाली व्यक्तियों का योगदान है वह पहले से ही रोगों को ही उपचार के लिए औषधियों का प्रयोग करते थे परन्तु औषधियों के प्रयोग के बाद भी रोगों पर सफलता न पा सकने तथा उसके प्रतिकूल प्रभावों को जानने के बाद और स्वयं पर भी औषधि चिकित्सा (medicinal medicine) की प्रणाली के कटुफल चखने के बाद प्राकृतिक चिकित्सा की शरण ग्रहण कर स्वस्थ जीवन (healthy life) जीने लगे। इन्होने इस पद्धति (Methods) के चमत्कारों (wonders) से प्रभावित होने के कारण इस पद्धति के प्रचार-प्रसार और विकास में लग कर प्राकृतिक चिकित्सा को नया जन्म दिया।

 

Source: https://www.jagran.com/miscellaneous/9716471.html

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